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Thursday, March 6, 2008

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पहली चुदाई

हाय फ़्रेंड्स कैसे हो? सब के लंड को मेरा सलाम और प्यारी चूतों को मेरा अतिविशेष प्रणाम। मैं अपना परिचय देता हूं।
मेरा नाम चिंटु है और मैं खाफ़ी हैंडसम दिखता हूं। मेरी हाइट 6" है और लंड मेरा 7 इंच का है जो किसी भी लड़की, औरत को घायल कर सकता है। मैं यहाँ अपनी पहली चुदाई की स्टोरी लिख रहा हूं।

मैं गुजरात के बड़े अच्छे शहर वडोदरा में रहता हूं। मेरे सामने एक मस्त अच्छी बड़े बूब्स वाली औंटी रहती हैं जिसको मैं भाभी कहता हूं। उसकी फ़ीगर 38 29 38 है। उनका नाम पायल भाभी है। उनकी शादी को 8 साल हो गये लेकिन उन्हें अभी तक बच्चा नहीं है।

मैं उनके घर आता जाता रहता था। एक दिन मैं गया तो देखा कोईं नहीं था। मेरे घर पर भी कोई नहीं था। मेरी मोम ने उनके घर खाने को बोला था। मैं दोपहर के टाइम उनके घर गया। फिर हम दोनो ने साथ खाना खाया। खाते समय वो मेरी और देख कर कातिल सी मुस्कुराहट देती थी।

खाना खत्म करने के बाद हम दोनो उनके रूम में बेड पर बैठ कर बातें कर ने लगे। बातों बातों में मैने पूछ लिया कि आपको बच्चा क्यों नहीं होता? उन्होंने कहा कि मेरे पति में कुछ प्रोब्लम है। मैने कहा आपको दुख नहीं होता तो वो एक आह भरकर बोली होता है पर अब ये दुख तुम दूर कर सकते हो। मैने पुछा कैसे?

तो वो धीरे से मेरे पास आकर बोली ऐसे। मैने कहा मुझे कुछ पता नहीं चला? तो उन्होंने मेरे शर्ट के बटन खोल कर किस कर ने लगी। मैं दो मिनट के लिये दंग रह गया फ़िर धीरे से वो मेरे होंठ पर आयी मैने भी उनको किस करना स्टार्ट कर दिया। फिर धीरे धीरे मैने उनके कपड़े उतारे और ब्रा और पैंटी में ले आया। उन्होंने कहा "ये देखने के लिये ही, अब ये तुम्हारे है जो चाहो वो करो" मैने पहली ब्रा उतार कर बूब्स चूसना शुरु किया। उनके मुंह से सिस्कियां निकलने लगी। फिर धीरे धीरे किस करते करते मैं नीचे पैंटी तक पहुंच गया और उसको भी सरका दिया। फिर उनकी चूत को मैं चाटने लगा। वो तो मस्त होके लेट गयी थी। फिर मैने उनके मुंह पे अपना लंड रख दिया और हम 69 पोजिशन में आ गये। हमने 15-20 मिनट तक ऐसा किया।

फिर उसने कहा कि बहुत हो गया अब तुम मुझे और मत तड़पाओ जल्दी अपना मोटा लंड घुसा दो मेरी चूत में। मैं खड़ा हो गया और मेरा लंड उनकी चूत पर रख दिया। और एक ही झटके में घुसा दिया वो तो चीख कर रो पड़ी फिर मैं रुक गया फिर धीरे धीरे स्ट्रोक लगाना शुरु किया उनको भी मज़ा आया। वो भी साथ देने लगी फिर मैं अपनी स्पीड बढ़ाता गया उनसे मुंह से आवाज़ आने लगी


"हा हा यस यस हाजु चोद मने हाजु चोद आ चुत ने फाड़ी ने भोस बनाई दे भेन चोद बाउ वरसो पछि चोदवा मल्यु छे चोद तु आजे चोद मने" और ये सुनकर मेरी स्पीड डबल हो गयी फिर मेरा पानी छुटने वाला था। मैने बोला तो वो कहने लगी कि चोदो और चोदो भर दो मेरी चूत तुम्हारे पानी से और मैं ने एक आक्कहिरी झटका दिया और छूट गया मेरा पानी। अब मैं उनके ऊपर लेट गया।


उस दिन हम ने 4 बार अलग-अलग तरीके से चुदाई की। और अब भी हम महीने में 3-4 बार ऐसा करते है।

Wednesday, March 5, 2008

भीगा सा सेक्स

मैं राजकोट का रहने वाला हूं। एक दिन मैं बारिश में भीगा हुआ घर आ रहा था तब रास्ते में एक भाभी की कार बंद हो गई थी, मुझे देखकर बोली कि मेरी कर बंद है प्लीज़ मुझे मेरे घर तक छोड़ देंगे? मैने बोला चलिये बैठिए, वो मेरी बाइक पर आ गई, तब मैने देखा की वो बहुत ही सुंदर और सेक्सी थी, करीब 30 साल की होंगी। उसके कपड़े में से उसका जिस्म साफ़ दिखाई देता था, मेरे मन में सेक्स की इच्छा होने लगी, मैं बाइक चलाते वक्त थोड़ा पीछे दबाया तो देखा कि वो भी आगे की ओर धक्का दे रही है। मुझे मज़ा आता था। जब उनका घर आया तो वो बोली कि यहीं रोक लो सो वो उतर गई फ़िर मैं चलने लगा तो बोली प्लीज़ अंदर आइये बारिश चालु है रुकने के बाद चले जाना। मैं भी यही चाहता था। सो उनके घर गया फ़िर देखा कि वहां कोई नहीं था। उनका लड़का था 8 साल का वो आया, फ़िर उन्होंने उससे कहा कि अपने रूम में जाकर सो जा तो वो चला गया फ़िर वो कपड़े बदल कर आकर मेरे सामने बैठी। उन्होंने बड़े सेक्सी कपड़े पहने थे मैं जब उनके बूब्स को देखने लगा तो बोली कि तुम भी भीग गये हो जाओ ऊपर मेरे पति के कपड़े पहन लो मैने पूछा कि कहां तो बोली चलो मैं दिखाती हूं। जब मैं ऊपर के कमरे में गया तो उन्होंने मुझे कपड़े दिये।

मैं जब चेंज करने के लिये बाथरूम में गया तो वो बोली मैं भी अन्दर आती हूं लाइट चालु कर देती हूं। जब वो अन्दर आयी तो उन्होंने गिरने का बहाना बनाकर मेरे ऊपर गिर पड़ी मैने उनको पकड़ा तो उसके बूब्स मेरे हाथों में थे, क्या नरम नरम थे वो, मुझे तो अच्छा लगा, तभी मैं जब अपना हाथ हटाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर वापस बूब्स पर रखा और बोली प्लीज़ दबाओ मुझे अच्छा लगता है, मैं इसी इन्तज़ार में था, और मेरा लंड टाइट हो गया, मैने पूछा तेरा नाम क्या है तो बोली रिया। तो रिया तुम्हारा पति तुम्हारे साथ सेक्स नहीं करता? तो बोली कि वो बहुत बड़ा बिजिनेसमैन है उनको टाइम ही नहीं मिलता। तभी कहा कि रिया मैं तुम्हे आज चोदुंगा और मजा दुंगा, तो वो बोली इसलिये तो मैने यहां बुलाया है तुझे और फ़िर क्या था मैने सीधा उनका फ़ेस पकड़ कर उनके गुलाबी और नाजुक लिप्स को चूमा और आहिस्ता आहिस्ता उनके कपड़े निकालने लगा अब वो मेरे सामने पूरी नंगी थी मैने फ़िर उनको पांव से लेकर चूमता हुआ उनकी चूत पर आया तो देखा कि वो एकदम साफ़ थी और रसीली हो गई थी और अभी भी किसी जवान लड़की की तरह तंग थी। मेरा मन काबु में नहीं था और मैने उनकी चूत पर जैसे ही अपने होंठ लगाये कि वो सीईईईईईईईईईईईस्सस्सस करने लगी और मैं अब जोर से चूसने लगा उनकी चूत को तभी अचानक वो मुझे खड़ा होने के लिये बोली फ़िर उन्होंने मेरी शर्ट निकाल दी और मेरा पैंट भी उतार दिया मैने अपनी चड्ढी भी उतार दी और अब मेरा लंड आज़ाद था जैसे ही मेरा 6.5 इंच का लंड अपना सीधा तनकर बाहर आया तो वो देखती ही रह गई और सहलाने लगी फ़िर मेरा लंड अपने मुंह में लेके चूसने लगी मुझे तो समझो स्वर्ग का आनंद आने लगा मेरे मुंह से भी आवाज़ आने लगी कि आआह्हह्हह्हह्ह ऊऊऊह्हह .

अब मैं और रिया दोनो पूरी तरह से गरम थे मैने शोवर चालु किया और अपनी बोडी पर पानी आया तो वो और भी स्सस्ससीईईक्सक्सक्सक्सक्सयययययी लगने लगी फ़िर मैने साबुन पूरे शरीर पर लगाया और लिपट गया, मेरे लंड की गरमी उनको चढ़ चुकी थी तभी मैने बोला कि जान अब न तड़पाओ तो वो बोली मैं तो कब से तैयार हूं, आ जाओ, और मैने रिया को नीचे झुकाया और अपना लंड उनकी गांड पर रगड़ा और फ़िर डोगी तरीके से पीछे से थोड़ा अन्दर डाला ओर रिया के मुंह से ऊऊऊऊईईईईइमा आवाज़ आयी तो मैने कहा कि अरे अभी तो शुरु ही किया है तो क्यों चिल्ला रही हो तो वो बोली पिछले 10 महीने से सेक्स नहीं किया है मैने फ़िर मैने तेल लिया और अपने लंड में पूरा लगाया और फ़िर बेड पर रिया को ले गया और फ़िर डोगी तरीके से लेटया फ़िर पीछे से अपना लंड थोड़ा अन्दर डाला और अपना मुंह उनके मुंह के पास ले जाकर उनके पूरे मुंह को अपने मुंह में लेकर दबाया और एक ही झटका दिया मेरा लंड उनकी चूत में और सीधा चूत को छेदता हुआ पूरा घुस गया उनकी चूत में और रिया चिल्लाई आआईईईईईईईईईईईईईईईईईईईइ ऊऊऊऊऊऊऊऊओह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्हह्ह म्मम्ममाआआआआआआआआआ माआआर्रर्रर्रर्रग्गग्गग्गगाआअयययययययययययययीईईईईईईइ लेकिन सभी आवाजें मेरे मुंह में ही समा गयी अब धीरे धीरे मैं लंड को अन्दर बाहर करने लगा और अब रिया भी मेरा साथ देने लगी तभी मैने अपना लनद निकाल कर उनको सीधा लिटा दिया और उनके पैरों को उठाकर अपने हाथों से फ़ैलाया और उठा दिया और फ़िर अपना टाइट लंड उनकी चूत के बिल्कुल सामने था सो मैने आहिस्ता से धक्का दिया तो सीधा उनकी चूत में चला गया अब तो रिया भी मेरे साथ मजा ले रही थी हमने पूरे 45 मिनट तक चुदाई की।

फ़िर मैने बोला अब कैसा लगता है तो बोली अपनी लाइफ़ में पहली बार सेक्स का मज़ा लिया है मैने फ़िर मैने उनको अपने ऊपर बिठाकर अपने लंड पर उनकी चूत लगा दी और अब वो मुझे चोदने लगी हम बैठे बैठे भी चुदाई करने लगे और फ़िर वो जड़ गई तो मैने अपनी रफ़्तार बढ़ाकर पूरी ताकत लगा दी उनको चोदने की अब तो उनको जो मज़ा आ रहा था वो सह नहीं सकती थी वो उछलने लगी समझो जैसे बिना पानी की मछली, मेरे लंड का धक्का पूरी रफ़्तार में आ गया था और आखिर में मैं भी जड़ गया और ऐसे ही हम दोनो 10 मिनट एक दूसरे पर लेटे रहे और फ़िर मैं खड़ा हो कर नहा कर बाहर निकला उन्होंने मेरा मोबाइल नम्बर लिया और कहा कि अगर मेरी सहेली को तुम्हारा लंड चाहिये तो आयेंगे तो मैने बोला कि हां मगर एक शर्त है कि जब भी हम बाहर मिलें तो कोई जानता नहीं हो ऐसे ही पेश आना हगा मैं एक नामी बिजिनेसमैन हूं और मुझे 100 % प्राइवेसी चाहिये तो वो बोली ये तो बहुत ही अच्छा है अब मैं तुम्हे कोल करुंगी तो आओगे न? मैने हां बोला और रिया की चुदाई के बाद और 2 औरतों को मैने जो रिया की ही फ़्रेंड थी उनको चोदा है अगर कोई औरत कोई राजकोट में प्राइवेट सेक्स एंजोय मेरे साथ करना चाहे तो कोन्टेक्ट कीजिये

Chota bhai

मेरा नाम आशा है मेरा छ्होटा भाई दासवी मैं पढ़ता है वह गोरा चित्ता और क़रीब मेरे ही बराबर लंबा भी है मैं इस समय 19 की हूँ और वह 15 का. मुझे भय्या के गुलाबी हूनत बहुत प्यारे लगते हैं दिल करता है की बस चबा लूं. पापा गुल्फ़ मैं है और माँ गोवेर्नमेंट जॉब मैं माँ जब जॉब की वजह से कहीं बाहर जाती तू घर मैं बस हम दो भाई बहन ही रह जाते थे. मेरे भाई का नाम अमित है और वह मुझे दीदी कहता है एक बार माँ कुच्छ दीनो के लिए बाहर गयी थी. उनकी एलेक्टीओं दूत्य लग गयी थी. माँ को एक हफ़्ते बाद आना था. रात मैं दिननेर के बाद कुच्छ देर ट्व देखा फिर अपने-अपने कमरे मैं सोने के लिए चले गाये
क़रीब एक आध घंटे बाद प्यास लगने की वजह से मेरी नींद खुल गयी अपनी सीदे तबले पैर बोट्थले देखा तो वह ख़ाली थी. मैं उठकर कित्चें मैं पानी पीने गयी तू लौटते समय देखा की अमित के कमरे की लिघ्ट ओं और दरवाज़ा भी तोड़ा सा खुला था. मुझे लगा की शायद वह लिघ्ट ओफ़्फ़ करना भूल गया है मैं ही बंद कर देती हूँ. मैं चुपके से उसके कमरे मैं गयी लेकिन अंदर का नज़ारा हैरान मैं हैरान हो गयी
अमित एक हाथ मैं कोई द पकड़कर उसे पार् रहा था और दूसरे हाथ से अपने ताने हुए लंड को पकड़कर मूट मार रहा था. मैं कभी सोच भी नही सकती की इतना मासूम लगने वाला दासवी का यह छ्ोक्रा ऐसा भी कर सकता है मैं दूं साढ़े चुपचाप खड़ी उसकी हरकत देखती रही, लेकिन शायद उसे मेरी उपस्थिति का आभास हो गया. उसने मेरी तरफ़ मुँह फेरा और दरवाज़े पैर मुझे खड़ा हैरान चौंक गया. वह बस मुझे देखता रहा और कुच्छ भी ना बोल पाया. फिर उसने मुँह फैर कर द टाकिएे के नीचे छ्छूपा दी. मुझे भी समझ ना आया की क्या करूँ. मेरे दिल मैं यह ख़्याल आया की कल से यह लड़का मुझसे शरमायगा और बात करने से भी कत्राएगा. घर मैं इसके अलावा और कोई है भी नही जिससे मेरा मनन बहालता. मुझे अपने दिन याद आए. मैं और मेरा एक काज़ीन इसी उमर के थे जबसे हमने मज़ा लेना शुरू किया था तू इसमे कौन सी बड़ी बात अगर यह मूट मार रहा था.
मैं धीरे-धीरे उसके पास गयी और उसके कंधे पैर हाथ रखकर उसके पास ही बैठ गयी वह चुपचाप रहा. रहा. मैने उसके कंधों को दबाते हुए कहा, "अरे यार अगर यही करना था तू काम से काम दरवाज़ा तू बंद कर लिया होता." वह कुच्छ नही बोला, बस मुँह दूसरी तरफ़ किए रहा. रहा. मैने अपने हाथों से उसका मुँह अपनी तरफ़ किया और बोली "अभी से ये मज़ा लेना शुरू कर दिया. कोई बात नही मैं जाती हूँ तू अपना मज़ा पूरा कर ले. लेकिन ज़रा एह द तू दिखा." मैने टाकिएे के नीचे से द निकल ली. एह हिंदी मैं लिखे मास्ट्रँ की द थी. मेरा काज़ीन भी बहुत सी मास्ट्रँ की किताबे लता था और हम दोनो ही मज़े लेने के लिए साथ-साथ पढ़ते थे. छुड़ाई के समय द के ड्िओलग बोलकर एक दूसरे का जोश बढ़ते थे.
जब मैं द उसे देकर बाहर जाने के लिए उठी तू वह पहली बार बोला, "दीदी सारा मज़ा तू आपने ख़राब कर दिया, अब क्या मज़ा करूँगा." "अरे अगर तुमने दरवाज़ा बंद किया होता तू मैं आती ही नही." "औुए अगर आपने देख लिया था तू चुपचाप चली जाती."
अगर मैं बहस मैं जीतना चाहती तू आसानी से जीत जाती लेकिन मेरा वह काज़ीन क़रीब 6 मोन्तस से नहीं आया था इसलिए मैं भी किसी से मज़ा लेना चाहती ही थी. अमित मेरा छ्होटा भाई था और बहुत ही सेक्ष्य लगता था इसलिए मैने सोचा की अगर घर मैं ही मज़ा मिल जाए तू बाहर जाने की क्या ज़रूरत. फिर अमित का लौड़ा अभी कुंवारा था. मैं कुंवारे लंड का मज़ा पहली बार लेती इसलिए मैने कहा, "चल अगर मैने तेरा मज़ा ख़राब किया है तू मैं ही तेरा मज़ा वापस कर देती हूँ." फिर मैं पलंग पैर बैठ गयी और उसे चित लिटाया और उसके मुरझाए लंड को अपनी मुती मैं लिया. उसने बचने की कोशिश की पैर मैने लंड को पकड़ लिया था. अब मेरे भाई को यक़ीन हो चुका था की मैं उसका राज़ नही खोलूँगी इसलिए उसने अपनी टांगे खोल दी ताकि मैं उसका लंड ठीक से पकड़ सकूँ. मैने उसके लंड को बहुत हिलाया दुलाया लेकिन वह खड़ा ही नही हूवा. वह बड़ी मायूसी के साथ बोला "देखा दीदी अब खड़ा ही नही हो रहा है
"अरे क्या बात करते हो. अभी तुमने अपनी बहन का कमाल कहाँ देखा है मैं अभी अपने प्यारे भाई का लंड खड़ा कर दूँगी." ऐसा कह मैं भी उसकी बगल मैं ही लेट गयी मैं उसका लंड सहलने लगी और उससे द पर्ने को कहा. "दीदी मुझे शरम आती है "साले अपना लंड बहन के हाथ मैं देते शरम नही आई." मैने ताना मारते हुवे कहा "ला मैं परहती हूँ." और मैने उसके हाथ से द ले ली. मैने एक स्टोरय निकली जिसमे भाई बहन के डियलोग थे. और उससे कहा, "मैं लड़की वाला बोलूँगी और तुम लड़के वाला. मैने पहले परा, "अरे राजा मेरी चूचियों का रस तू बहुत पी लिया अब अपना बनाना शाके भी तू टास्ते करओ."
"अभी लो रानी पैर मैं डरता हूँ इसलिए की मेरा लंड बहुत बड़ा है तुम्हारी नाज़ुक कसी छूट मैं कैसे जाएगा."
और इतना पारकर हुंदोनो ही मुस्करा दिए क्योंकि यहा हालत बिल्कुल उल्टे थे. मैं उसकी बड़ी बहन थी और मेरी छूट बड़ी थी और उसका लंड छ्होटा था. वह शर्मा गया लेकिन थोड़ी सी परहाय के बाद ही उसके लंड मैं जान भर गयी और वह टन्णकर क़रीब 6 इंच का लंबा और 1.5 का मोटा हो गया. मैने उसके हाथ से किताब लेकर कहा, "अब इस किताब की कोई ज़रूरत नही. देख अब तेरा खड़ा हो गया है तू बस दिल मैं सोच ले की तू किसी की छोड़ रहा है और मैं तेरी मूट मार देती हूँ."
मैं अब उसके लंड की मूट मार रही थी और वह मज़ा ले रहा था. बीच बीच मैं सिसकारियाँ भी भरता था. एकाएक उसने छूटड़ उठाकर लंड ऊपर की ऊर तेला और बोला, "बस दीदी" और उसके लंड ने गाढ़ा पानी फैंक दिया जो मेरी हथेली पैर गिरा. मैं उसके लंड के रस को उसके लंड पैर लगती उसी तरह सहलती रही और कहा, "क्यों भय्या मज़ा आया?"
"सच दीदी बहुत मज़ा आया." "अच्छा यह बता की ख़्यालों मैं किसकी ले रहे थे?"
"दीदी शरम आती है बाद मैं बतौँगा." इतना कह उसने टाकिएे मैं मुँह छ्छूपा लिया.
"अच्छा चल अब सो जा नींद अच्छी आएगी. और आगे से जब ये करना हो तू दरवाज़ा बंद कर लिया करना." "अब क्या करना दरवाज़ा बंद करके दीदी तुमने तू सब देख ही लिया है
"चल शैतान कही के." मैने उसके गाल पैर हल्की सी छपत मारी और उसके हौंा. को चूमा. मैं और क़िसस करना चाहती थी पैर आगे के लिए छ्छोड़ कर वापस अपने कमरे मैं आई. अपनी शलवार कमीज़ उतर कर निघटय पहनने लगी तू देखा की मेरी पंतय बुरी तरह भीगी हिई है अमित के लंड का पानी निकलते-निकलते मेरी छूट ने भी पानी छ्छोड़ दिया था. अपना हाथ पंतय मैं डालकर अपनी छूट सहलने लगी का स्पर्श पाकर मेरी छूट फिर से सिसकने लगी और मेरा पूरा हाथ गीला हो गया. छूट की आग बुझाने का कोई रास्ता नही था सिवा अपनी उंगली के. मैं बेद पैर लेट गयी अमित के लंड के साथ खेलने से मैं बहुत एक्शसीतेड थी और अपनी प्यास बुझाने के लिए अपनी बीच वाली उंगली जड़ तक छूट मैं डाल दी. टाकिएे को सीने से कसकर भींचा और जांघो के बीच दूसरा तकिया दबा आँखे बंद की और अमित के लंड को याद करके उंगली अंदर बाहर करने लगी इतनी मस्ती छ्छादी थी की क्या बताए, मनन कर रहा था की अभी जाकर अमित का लंड अपनी छूट मैं डलवा ले. उंगली से छूट की प्यास और बार्ह गयी इसलिए उंगली निकल टाकिएे को छूट के ऊपर दबा औंधे मुँह लेटकर धक्के लगाने लगी बहुत देर बाद छूट ने पानी छ्छोड़ा और मैं वैसे ही सो गयी
सुबह उठी तू पूरा बदन अंबुझी प्यास की वजह से सुलग रहा था. लाख रग़ाद लो टाकिएे पैर लेकिन छूट मैं लंड घुसकर जो मज़ा देता है उसका कहना ही क्या. बेद पा लेते हुवे मैं सोचती रही की अमित के कुंवारे लंड को कैसे अपनी छूट का रास्ता दिखाया जाए. फिर उठकर तैयार हुई. अमित भी सचूल जाने को तैयार था. नाश्ते की तबले हुंदोनो आमने-सामने थे. नज़रे मिलते ही रात की याद ताज़ा हो गयी और हुंदोनो मुस्करा दिए अमित मुझसे कुच्छ शर्मा रहा था की कहीं मैं उसे छ्छेद ना दूं. मुझे लगा की अगर अभी कुच्छ बोलूँगी तू वह बिदक जाएगा इसलिए चाहते हुए भी ना बोली.
चलते समय मैने कहा, "चलो आज तुम्हे अपने स्कूटेर पैर सचूल छ्छोड़ दूं." वह फ़ौरन तय्यार हो गया और मेरे पीच्े बैठ गया. वह तोड़ा स्कूछता हूवा मुझसे अलग बैठा था. वह पीछे की स्टेपनी पकड़े था. मैने स्पीड से स्कूटेर चलाया तू उसका बालंसे बिगड़ गया और संभालने के लिए उसने मेरी कमर पकड़ ली. मैं बोली, "कसकर पकड़ लो शर्मा क्यों रहे हो?"
"अच्छा दीदी" और उसने मुझे कसकर कमर से पकड़ लिया और मुझसे छिपक सा गया. उसका लंड कड़ा हो गया था और वह अपनी जांघो के बीच मेरे छूटड़ को जकड़े था. "क्या रात वाली बात याद आ रही है अमित?" "दीदी रात की तू बात ही मत करो. कहीं ऐसा ना हो की मैं सचूल मैं भी शुरू हो जौन." "अच्छा तू बहुत मज़ा आया रात मैं "हाँ दीदी इतना मज़ा ज़िंदगी मैं कभी नही आया. काश कल की रात कभी ख़तम ना होती. आपके जाने के बाद मेरा फिर खड़ा हो गया था पैर आपके हाथ मैं जो बात थी वो कहाँ. ऐसे ही सो गया."
"तू मुझे बुला लिया होता. अब तू हम तुम दोस्त हैं एक दूसरे के काम आ सकते हैं "तू फिर दीदी आज राक का प्रोग्राम पक्का." "चल हट केवल अपने बारे मैं ही सोचता है ये नही पूछता की मेरी हालत कैसी है मुझे तू किसी चीज़ की ज़रूरत नही है चल मैं आज नही आती तेरे पास." "अरे आप तू नाराज़ हो गयी दीदी. आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूँगा. मुझे तू कुच्छ भी पता नही अब आप ही को मुझे सब सीखना होगा."
तब तक उसका सचूल आ गया था. मैने स्कूटेर रोका और वह उतरने के बाद मुझे देखने लगा लेकिन मैं उसपर नज़र डाले बग़ैर आगे चल दी. स्कूटेर के शीशे मैं देखा की वह मायूस सा सचूल मैं जा रहा है मैं मनन ही मनन बहुत ख़ुश हुई की चलो अपने दिल की बात का इशारा तू उसे दे ही दिया.
शाम को मैं अपने कॉल्लेगे से जल्दी ही वापस आ गयी थी. अमित 2 बजे वापस आया तू मुझे घर पैर देखकर हैरान रह गया. मुझे लेता देखकर बोला, "दीदी आपकी तबीयत तू ठीक है "ठीक ही समझो, तुम बताओ कुच्छ हॉमेवोर्क मिला है क्या?" "दीदी कल सुंदय है ही. वैसे कल रात का काफ़ी हॉमेवोर्क बचा हूवा है मैने हँसी दबाते हुवे कहा, "क्यो पूरा तू करवा दिया था. वैसे भी तुमको यह सब नही करना चाहिए. सेहत पैर असर पड़ता है कोई लड़की पता लो, आजकल की लड़किया भी इस काम मैं काफ़ी इंटेरेस्टेड रहती हैं "दीदी आप तू ऐसे कह रही हैं जैसे लड़कियाँ मेरे लिए शलवार नीचे और कमीज़ ऊपर किए तय्यार है की आओ पंत खोलकर मेरी ले लो." "नही ऐसी बात नही है लड़की पतनी आनी चाहिए."
फिर मैं उठकर नाश्ता बनाने लगी मनन मैं सोच रही थी की कैसे इस कुंवारे लंड को लड़की पटकर छोड़ना सीख़ाओं. लूंच तबले पैर उससे पूच्हा, "अच्छा यह बता तेरी किसी लड़की से दोस्ती है "हाँ दीदी सुधा से." "कहाँ तक "बस बातें करते हैं और सचूल मैं साथ ही बैठते हैं मैने सीधी बात करने के लिए कहा, "कभी उसकी लेने का मनन करता है "दीदी आप कैसी बात करती हैं वह शर्मा गया तू मैं बोली, "इसमे शर्माने की क्या बात है मूतही तू तो रोज़ मारता है ख़्यालो मैं कभी सुधा की ली है या नही सच बता." "लेकिन दीदी ख़्यालो मैं लेने से क्या होता है "तू इसका मतलब है की तू उसकी असल मैं लेना चाहता है मैने कहा.
"उससे ज़्यादा तू और एक है जिसकी मैं लेना चाहता हूँ, जो मुझे बहुत ही अच्छी लगती है "जिसकी कल रात ख़्यालो मैं ली थी?" उसने सर हिलाकर हाँ कर दिया पैर मेरे बार-बार पूच्ह्ने पैर भी उसने नाम नही बताया. इतना ज़रूर कहा की उसकी छुड़ाई कर लेने के बाद ही उसका नाम सबसे पहले मुझे बताएगा. मैने ज़्यादा नही पूच्हा क्योंकि मेरी छूट फिर से गीली होने लगी थी. मैं चाहती थी की इससे पहले की मेरी छूट लंड के लिए बेचैन हो वह ख़ुद मेरी छूट मैं अपना लंड डालने के लिए गिदगिड़ाए. मैं चाहती थी की वह लंड हाथ मैं लेकर मेरी मिन्नत करे की दीदी बस एक बार छोड़ने दो. मेरा दिमाग़ ठीक से काम नही कर रहा था इसलिए बोली, "अच्छा चल कपड़े बदल कर आ मैं भी बदलती हूँ."
वह अपनी उनिफ़ोर्म चांगे करने गया और मैने भी प्लान के मुताबिक़ अपनी शलवार कमीज़ उतर दी. फिर ब्रा और पंतय भी उतर दी क्योंकि पाटने के मदमस्त मौक़े पैर ये दिक्कत करते. अपना देसी पेट्टीकोत और ढीला ब्लौसे ही ऐसे मौक़े पैर सही रहते हैं जब बिस्तर पैर लेटो तू पेट्टीकोत अपने आप आसानी से घुटनो तक आ जाता है और थोड़ी कोशिश से ही और ऊपर आ जाता है जहाँ तक ब्लौसे का सवाल है तू तोड़ा सा झुको तू सारा माल छ्छालाक कर बाहर आ जाता है बस यही सोचकर मैने पेट्टीकोत और ब्लौसे पहना था.
वह सिर्फ़ प्यजमा और बनियाँ पहनकर आ गया. उसका गोरा चित्ता चिकना बदन मदमस्त करने वाला लग रहा था. एकाएक मुझे एक ईड़िया आया. मैं बोली, "मेरी कमर मैं तोड़ा दर्द हो रहा है ज़रा बल्म लगा दे." यह बेद पैर लेतने का पेरफ़ेक्ट बहाना था और मैं बिस्तर पैर पेट के बल लेट गयी मैने पेट्टीकोत तोड़ा ढीला बाँधा था इसलिए लेट्टे ही वह नीचे खिसक गया और मेरे कुटड़ो के बीच की दरार दिखाए देने लगी लेट्टे ही मैने हाथ भी ऊपर कर लिए जिससे ब्लौसे भी ऊपर हो गया और उसे मालिश करने के लिए ज़्यादा जगह मिल गयी वह मेरे पास बैठकर मेरी कमर पैर ईओडेक्श( पाईं बल्म) लगाकर धीरे धीरे मालिश करने लगा. उसका स्पर्श(तौछ) बड़ा ही सेक्ष्य था और मेरे पूरे बदन मैं सिहरन सी दौड़ गयी थोड़ी देर बाद मैने करवत लेकर अमित की ऊर मुँह कर लिया और उसकी जाँघ पैर हाथ रखकर ठीक से बैठने को कहा. करवत लेने से मेरी चूचियाँ ब्लौसे के ऊपर से आधी से ज़्यादा बाहर निकल आई थी. उसकी जाँघ पैर हाथ रखे रखे ही मैने पहले की बात आगे बरहाय, "तुझे पता है की लड़की कैसे पटाया जाता है
"अरे दीदी अभी तू मैं बच्चा हूँ. ये सब आप बताएँगी तब मालूम होगा मुझे." ईओडेक्श लगाने के दौरान मेरा ब्लौसे ऊपर खींच गया था जिसकी वजह से मेरी गोलाईयाँ नीचे से भी झाँक रही थी. मैने देखा की वह एकतक मेरी चूचियों को घूर रहा है उसके कहने के अंदाज़ से भी मालूम हो गया की वह इस सिलसिले मैं ज़्यादा बात करना छह रह है
"अरे यार लड़की पाटने के लिए पहले ऊपर ऊपर से हाथ फेरना पड़ता है ये मालूम करने के लिए की वह बुरा तू नही मानेगी." "पैर कैसे दीदी." उसने पूच्हा और अपने पैर ऊपर किए. मैने तोड़ा खिसक कर उसके लिए जगह बनाई और कहा, "देख जब लड़की से हाथ मिलाओ तू उसको ज़्यादा देर तक पकड़ कर रखो, देखो कब तक नही छ्छुड़ती है और जब पीछे से उसकी आँख बंद कर के पूच्हो की मैं कौन हूँ तू अपना केला धीरे से उसके पीच्े लगा दो. जब कान मैं कुच्छ बोलो तू अपना गाल उसके गाल पैर रग़ाद दो. वो अगर इन सब बातों का बुरा नही मानती तू आगे की सोचो."
अमित बड़े ध्यान से सुन रहा था. वह बोला, "दीदी सुधा तू इन सब का कोई बुरा नही मानती जबकि मैने कभी ये सोचकर नही किया था. कभी कभी तू उसकी कमर मैं हाथ डाल देता हूँ पैर वह कुच्छ नही कहती." "तब तू यार छ्होक्री तय्यार है और अब तू उसके साथ दूसरा खेल शुरू कर." "कौन सा दीदी?" "बातों वाला. यानी कभी उसके संटरो की तारीफ़ करके देख क्या कहती है अगर मुस्करकार बुरा मानती है तू समझ ले की पाटने मैं ज़्यादा देर नही लगेगी."
"पैर दीदी उसके तू बहुत छ्होटे-छ्होटे संटरे हैं तारीफ़ के काबिल तू आपके है वह बोला और शरमकार मुँह छ्छूपा लिया. मुझे तू इसी घड़ी का इंतेज़र था. मैने उसका चेहरा पकड़कर अपनी ऊर घूमते हुवे कहा, "मैं तुझे लड़की पटना सीखा रही हूँ और तू मुझी पैर नज़रे जमाए है
"नही दीदी सच मैं आपकी चूचियाँ बहुत प्यारी है बहुत दिल करता है और उसने मेरी कमर मैं एक हाथ डाल दिया. "अरे क्या करने को दिल करता है ये तू बता." मैने इतलकर पूच्हा.
"इनको सहलने का और इनका रस पीने का." अब उसके हौसले बुलंद हो चुके थे और उसे यक़ीन था की अब मैं उसकी बात का बुरा नही मनूंगी. "तू कल रात बोलता. तेरी मूट मरते हुवे इनको तेरे मुँह मैं लगा देती. मेरा कुच्छ घिस तू नही जाता. चल आज जब तेरी मूट मरूंगी तू उस वक़्त अपनी मुराद पूरी कर लेना." इतना कह उसके प्यजमा मैं हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया जु पूरी तरह से टन गया था. "अरे ये तू अभी से तय्यार है
तभी वह आगे को झुका और अपना चेहरा मेरे सीने मैं छ्छूपा लिया. मैने उसको बानहो मैं भरकर अपने क़रीब लिटा लिया और कस के दबा लिया. ऐसा करने से मेरी छूट उसके लंड पैर दब्ने लगी उसने भी मेरी गार्दन मैं हाथ दल मुझे दबा लिया. तभी मुझे लगा की वो ब्लौसे के ऊपर से ही मेरी लेफ्ट चूचि को चूस रहा है मैने उससे कहा "अरे ये क्या कर रहा है मेरा ब्लौसे ख़राब हो जाएगा."
उसने झट से मेरा ब्लौसे ऊपर किया और निपपले मुँह मैं लेकर चूसना शुरू कर दिया. मैं उसकी हिम्मत की दाद दिए बग़ैर नही रह सकी. वह मेरे साथ पूरी तरह से आज़ाद हो गया था. अब यह मेरे ऊपर था की मैं उसको कितनी आज़ादी देती हूँ. अगर मैं उसे आगे कुच्छ करने देती तू इसका मतलब था की मैं ज़्यादा बेकरार हूँ छुड़वाने के लिए और अगर उसे माना करती तू उसका मूड ख़राब हो जाता और शायद फिर वह मुझसे बात भी ना करे. इसलिए मैने बीच का रास्ता लिया और बनावती ग़ुस्से से बोली, "अरे ये क्या तू तो ज़बरदस्ती करने लगा. तुझे शरम नही आती."
"ओह् दीदी आपने तू कहा था की मेरा ब्लौसे मत ख़राब कर. रस पीने को तू माना नही किया था इसलिए मैने ब्लौसे को ऊपर उठा दिया." उसकी नज़र मेरी लेफ्ट चूचि पैर ही थी जो की ब्लौसे से बाहर थी. वह अपने को और नही रोक सका और फिर से मेरी चूचि को मुँह मैं ले ली और छ्ोसने लगा. मुझे भी मज़ा आ रहा था और मेरी प्यास इन्कर्ेसए कर रहिति. कुच्छ देर बाद मैने ज़बरदस्ती उसका मुँह लेफ्ट चूचि से हटाया और रिघ्त चूचि की तरफ़ लाते हुवे बोली, "अरे साले ये दो होती हैं और दोइनो मैं बराबर का मज़ा होता है
उसने रिघ्त मम्मे को भी ब्लौसे से बाहर किया और उसका निपपले मुँह मैं लेकर चुभलने लगा और साथ ही एक हाथ से वह मेरी लेफ्ट चूचि को सहलने लगा. कुच्छ देर बाद मेरा मनन उसके गुलाबी हूँतो को छूमे को करने लगा तू मैने उससे कहा, "कभी किसी को क़िसस किया है "नही दीदी पैर सुना है की इसमे बहुत मज़ा आता है

"बिल्कुल ठीक सुना है पैर क़िसस ठीक से करना आना चाहिए."
"कैसे?"
उसने पूछा और मेरी चूचि से मुँह हटा लिया. अब मेरी दोनो चूचियाँ ब्लौसे से आज़ाद खुली हवा मैं तनी थी लेकिन मैने उन्हे छ्छूपाया नही बल्कि अपना मुँह उसके मुँह के पास लेजाकर अपने हूनत उसके हूनत पैर रख दिए फिर धीरे से अपने हूनत से उसके हूनत खोलकर उन्हे प्यार से चूसने लगी क़रीब दो मिनुटे तक उसके हूनत चूस्ती रही फिर बोली.
"ऐसे."
वह बहुत एक्शसीतेड हो गया था. इससे पहले की मैं उसे बोलूं की वह भी एक बार्किस्स करने की प्रकटिसे कर ले, वह ख़ुद ही बोला, "दीदी मैं भी करूँ आपको एक बार?" "कर ले." मैने मुस्कराते हुवे कहा.
अमित ने मेरी ही स्टयले मैं मुझे क़िसस किया. मेरे हूँतो को चूस्ते समय उसका सीना मेरे सीने पैर आकर दबाव डाल रहा था जिससे मेरी मस्ती दोगुनी हो गयी थी. उसका क़िसस ख़तम करने के बाद मैने उसे अपने ऊपर से हटाया और बानहो मैं लेकर फिर से उसके हूनत चूसने लगी इस बार मैं तोड़ा ज़्यादा जोश से उसे चूस रही थी. उसने मेरी एक चूचि पकड़ ली थी और उसे कस कसकर दबा रहा था. मैने अपनी कमर आगे करके छूट उसके लंड पैर दबाई. लंड तू एकदम तनकर ईरों रोड हो गया था. छुड़वाने का एकदम सही मौक़ा था पैर मैं चाहती थी की वह मुझसे छोड़ने के लिए भीख मांगे और मैं उसपर एहसान करके उसे छोड़ने की इज़ाज़त दूं.
मैं बोली, "चल अब बहुत हो गया, ला अब तेरी मूट मार दूं." "दीदी एक रेक़ुएस्ट करूँ?" "क्या?" मैने पूच्हा. "लेकिन रेक़ुएस्ट ऐसी होनी चाहिए की मुझे बुरा ना लगे."
ऐसा लग रहा था की वह मेरी बात ही नही सुन रहा है बस अपनी कहे जा रहा है वह बोला, "दीदी मैने सुना है की अंदर डालने मैं बहुत मज़ा आता है डालने वाले को भी और डलवाने वाले को भी. मैं भी एक बार अंदर डालना चाहता हूँ."
"नहीं अमित तुम मेरे छ्होटे भाई हो और मैं तुम्हारी बड़ी बहन." "दीदी मैं आपकी लूंगा नही बस अंदर डालने दीजिए." "अरे यार तू फिर लेने मैं क्या बचा." "दीदी बस अंदर डालकर देखूँगा की कैसा लगता है छोदुँगा नही प्लेआसए दीदी."
मैने उसपर एहसान करते हुवे कहा, "तुम मेरे भाई हो इसलिए मैं तुम्हारी बात को माना नही कर सकती पैर मेरी एक शर्त है तुमको बताना होगा की अक्सर ख़्यालो मैं किसकी छोड़ते हो?" और मैं बेद पैर पैर फैलाकर चित्त लेट गयी और उसे घुटने के बल अपने ऊपर बैठने को कहा. वह बैठा तू उसके प्यजमा के ज़रबंद को खोलकर प्यजमा नीचे कर दिया. उसका लंड तनकर खड़ा था. मैने उसकी बाँह पकड़ कर उसे अपने ऊपर कोहनी के बल लीयता लिया जिससे उसका पूरा वज़न उसके घुटनो और कोहनी पैर आ गया. वह अब और नही रुक सकता था. उसने मेरी एक चूचि को मुँह मैं भर लिया जो की ब्लौसे से बाहर थी. मैं उसे अभी और छ्छेड़ना छाती थी. "सुन अमित ब्लौसे ऊपर होने से चुभ रहा है ऐसा कर इसको नीचे करके मेरे संटरे ढांप दे." "नही दीदी मैं इसे खोल देता हूँ." और उसने ब्लौसे के बुट्तों खोल दिया. अब मेरी दोनो चूचिया पूरी नंगी थी. उसने लपककर दोनो को क़ब्ज़े मैं कर लिया. अब एक चूचि उसके मुँह मैं थी और दूसरी को वह मसल रहा था. वह मेरी चूचियों का मज़ा लेने लगा और मैने अपना पेट्टीकोत ऊपर करके उसके लंड को हाथ से पकड़ कर अपनी गीली छूट पैर रग़ादना शुरू कर दिया. कुच्छ देर बाद लंड को छूट के मुँह पैर रखकर बोली, "ले अब तेरे चाकू को अपने खर्बूजे पैर रख दिया है पैर अंदर आने से पहले उसका नाम बता जिसकी तू बहुत दिन से छोड़ना चाहता है और जिसे याद करके मूट मारता है
वह मेरी चूचियों को पकड़कर मेरे ऊपर झुक गया और अपने हूनत मेरे हूनत पैर रख दिए मैं भी अपना मुँह खोलकर उसके हूनत चूसने लगी कुच्छ देर बाद मैने कहा, "हाँ तू मेरे प्यारे भाई अब बता तेरे सपनो की रानी कौन है
"दीदी आप बुरा मत मानिएगा पैर मैने आज तक जितनी भी मूट मारी है सिर्फ़ आपको ख़्यालो मैं रखकर."
"हाय भय्या तू कितना बेसरम है अपनी बड़ी बहन के बारे मैं ऐसा सोचता था." "ओह् दीदी मैं क्या करूँ आप बहुत ख़ूबसूरत और सेक्ष्य है मैं तू कब से अप्पकी चूचियों का रस पीना चाहता था और आपकी छ्होट मैं लंड डालना चाहता था. आज दिल की आरज़ू पूरी हुई." और फिर उसने शरमकार आँखे बंद करके धीरे से अपना लंड मेरी छूट मैं डाला और वादे के मुताबिक़ चुपचाप लेट गया.
"अरे तू मुझे इतना चाहता है मैने तू कभी सोचा भी नही था की घर मैं ही एक लंड मेरे लिए तड़प रहा है पहले बोला होता तू पहले ही तुझे मैका दे देती." और मैने धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलनी शुरू कर दी. बीच-बीच मैं उसकी गांड भी दबा देती.
"दीदी मेरी किस्मत देखिए कितनी झांतु है जिस छ्होट के लिए तड़प रहा था उसी छूट मैं लंड पड़ा है पैर छोड़ नही सकता. पैर फिर भी लग रहा है की स्वर्ग मैं हूँ." वह खुल कर लंड छ्होट बोल रहा था पैर मैने बुरा नही माना. "अच्छा दीदी अब वायदे के मुताबिक़ बाहर निकलता हूँ." और वह लंड बाहर निकालने को तय्यार हूवा.
मैं तू सोच रही थी की वह अब छूट मैं लंड का धक्का लगाना शुरू करेगा लेकिन यह तू ठीक उल्टा कर रहा था. मुझे उसपर बड़ी दया आई. साथ ही अच्छा भी लगा की वायदे का पक्का है अब मेरा फ़र्ज़ बनता था की मैं उसकी वफ़ादारी का इनाम अपनी छूट छुड़वकर दूं. इसलिए उससे बोली, "अरे यार तूने मेरी छूट की अपने ख़्यालो मैं इतनी पूजा की है और तुमने अपना वादा भी निभाया इसलिए मैं अपने प्यारे भाई का दिल नही तूडूंगी. चल अगर तू अपनी बहन को छोड़कर बाहंचोड़ बनना ही चाहता है तू छोड़ ले अपनी जवान बड़ी बहन की छूट."
मैने जानकार इतने गंदे वॉर्ड्स उसे किए थे पैर वह बुरा ना मानकर ख़ुश होता हूवा बोला, "सच दीदी." और फ़ौरन मेरी छूट मैं अपना लंड ढकाधक पैलने लगा की कहीं मैं अपना इरादा ना बदल दूं.
"तू हबूत किस्मत वाला है अमित." मैं उसके कुंवारे लंड की छुड़ाई का मज़ा लेते हुवे बोली."क्यों दीदी?" "अरे म्यार तू अपनी ज़िंदगी की पहली छुड़ाई अपनी ही बहन की कर रहा है और उसी बहन की जिसकी तू जाने क़ब्से छोड़ना चाहता था."
"हाँ दीदी मुझे तू अब भी यक़ीन नही आ रहा है लगता है सपने मैं छोड़ रहा हूँ जैसे रोज़ आपको छोड़ता था." फिर वह मेरी एक चूचि को मुँह मैं दबा कर चूसने लगा. उसके धाक्को की रफ़्तार अभी भी काम नही हुई थी. मैं भी काफ़ी दीनो के बाद छुड़ रही थी इसलिए मैं भी छुड़ाई का पूरा मज़ा ले रही थी.
वह एक पल रुका फिर लंड को गहराई तक ठीक से पैल्कर ज़ोर-ज़ोर से छोड़ने लगा. वह अब झड़ने वाला था. मैं भी सातवे आसमान पैर पहुँच गयी थी और नीचे से कमर उठा-उठाकर उसके धाक्को का जवाब दे रही थी. उसने मेरी चूचि छ्छोड़कर मेरे हूँतो की मुँह मैं ले लिया जो की मुझे हमेशा अच्छा लगता था. मुझे चूमटे हुए कसकस्कर दो चार धक्के दिए और और "हाए आशा मेरी जान" कहते हुवे झड़कर मेरे ऊपर छिपक गया. मैने भी नीचे से दो चार धक्के दिए और "हाए मेरे राजा कहते हुवे झाड़ गयी
छुड़ाई के जोश ने हुंदोनो को निढाल कर दिया था. हुंदोनो कुच्छ देर तक यूँ ही एक दूसरे से चिपके रहे. कुच्छ देर बाद मैने उससे पूच्ह, "क्यों मज़ा आया मेरे बाहंचोड़ भाई को अपनी बहन की छूट छोड़ने मैं उसका लंड अभी भी मेरी छूट मैं था. उसने मुझे कसकर अपनी बानहो मैं जकदकर अपने लंड को मेरी छूट पैर कसकर दबाया और बोला, "बहुत मज़ा आया दीदी. यक़ीन नही होता की मैने अपनी बहन को छोड़ा है और बाहंचोड़ बन गया हूँ." "तू क्या मैने तेरी मूट मारी है "नही दीदी यह बात नही है "तू क्या तुझे अब अफ़सोस लग रहा है अपनी बहन को छोड़कर बाहंचोड़ बनने का."
"नही दीदी ये बात भी नही है मुझे तू बड़ा ही मज़ा आया बाहंचोड़ बनने मैं मनन तू कर रह की बासस अब सिर्फ़ अपनी दीदी की जवानी का रास ही पीटा रहो. हाय दीदी बल्कि मैं तू सोच रहा हूँ की भगवान ने मुझे सिर्फ़ एक बहन क्यों दी. अगर एक दो और होती तू सबको छोड़ता. दीदी मैं तू एह सोच रहा हूँ की यह कैसे छुड़ाई हुई की पूरी तरह से छोड़ लिया लेकिन छूट देखी भी नही."
"कोई बात नही मज़ा तू पूरा लिया ना?" "हाँ दीदी मज़ा तू ख़ूब आया." "तू घबराता क्यों है अब तू तूने अपनी बहन छोड़ ही ली है अब सब कुच्छ तुझे दिखाओँगी. जब तक माँ नही आती मैं घर पैर नंगी ही रहूंगी और तुझे अपनी छूट भी चात्वाओंगी और तेरा लंड भी चूसूंगी. बहुत मज़ा आता है "सच दीदी?" "हाँ. अच्छा एक बातय है तू इस बात का अफ़सोस ना कर की तेरे सिर्फ़ एक ही बहन है मैं तेरे लिए और छूट का जुगाड़ कर दूँगी.."
"नही दीदी अपनी बहन को छोड़ने मैं मज़ा ही अनोखा है बाहर क्या मज़ा आएगा?"
"अच्छा चल एक काम कर तू माँ को छोड़ ले और मदरचोड़ भी बन जा." "ओह दीदी ये कैसे होगा?"
"घबरा मत पूरा इंतेज़ाम मैं कर डूबगी. माँ अभी 38 साल की है तुझे मदरचोड़ बनने मैं भी बड़ा मज़ा आएगा."
"हाय दीदी आप कितनी अच्छी हैं दीदी एक बार अभी और छोड़ने दो इस बार पूरी नंगी करके छोदुँगा." "जी नही आप मुझे अब माफ़ करिय." "दीदी प्लेआसए सिर्फ़ एक बार." और लंड को छूट पैर दबा दिया.
"सिर्फ़ एक बार." मैने ज़ोर देकर पूच्हा. "सिर्फ़ एक बार दीदी पक्का वादा."
"सिर्फ़ एक बार करना है तू बिल्कुल नही." "क्यों दीदी?" अब तक उसका लंड मेरी छूट मैं अपना पूरा रस नीचोड़कर बाहर आगया था. मैने उसे झटके देते हुवे कहा,
"अगर एक बार बोलूँगी तब तुम अभी ही मुझे एक बार और छोड़ लोगे?" "हाँ दीदी."
"ठीक है बाक़ी दिन क्या होगा. बस मेरी देखकर मूट मारा करेगा क्या. और मैं क्या बाहर से कोई लौँगी अपने लिए अगर सिर्फ़ एक बार मेरी लेनी है तू बिल्कुल नही."
उसे कुच्छ देर बाद जब मेरी बात समझ मैं आई तू उसके लांद मैं थोड़ी जान आए और उसे मेरी छूट परा रग़दते हुवे बोल्ब, "ओह दीदी उ र ग्रेट."

प्रिया की चुदाई

मैं अपने बारे में लिख रहा हूं, मैं रोहतक (हरियाणा) का रहने वाला हूं, मेरा नाम अमन कुमार है, मैं एक मैकेनिकल इंजीनियर हूं। मेरी उमर 23 साल है, ये आज से 2 साल पहले की बात है कि मैं एक लड़की को रोज़ देखता था उस लड़की का नाम प्रिया था, वो रोहतक की रहने वाली थी, वो गर्ल्स कोलेज में पढ़ती थी, देखने में उसका फ़ीगर इतना मस्त नहीं लगता था, एक दिन की बात है वो मुझे देखकर मुस्करा कर चली गई, कई दिन ऐसे ही चलता रहा। हम धीरे धीरे मिलने लगे,
एक दिन उसने कहा कि मेरे घर पर कोई नहीं है आप आज आ जाओ, मुझ अकेली को डर लगता है, रात 11 बजे मैं उसके घर गया और उसने अपना दरवाजा खोला, कुछ देर हम दोनो एकदम चुपचाप बाते रनहे, इधर उधर की बात करते – 2 हम दोनो नजदीक आ गई थे, मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा था, मैं जल्दी से उसको किस की और कपड़े उतारने लग गया, वो मना नहीं कर रही थी, मैने जल्दी से अपने कपड़े भी उतार दिये और हम दोनो बेड पर लेट गये, मैने अपनी 1 उंगली उसकी चूत में डाल दी, धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगा, थोड़ी देर में उसको सेक्स चढ़ गया उससे रुका नहीं जा रहा था, वो बार बार कहने लगी मेरे अंदर अपना डालो, मैं उसको और तड़पाना चाहता था। थोड़ी देर में उसका पानी निकल गया, फ़िर मैने उसको अपना लंड चूसने को कहा, वो मना करती रही बाद में मान गई। मेरा कुछ देर में पानी निकल गया और वो सारा पानी पी गई, थोड़ी देर हम ऐसे ही एक दूसरे के ऊपर लेटे रहे, कुछ देर बाद मेरा लंड दोबारा खड़ा हो गया, मैने अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर रखा और थोड़ा धक्का लगाया वो चिल्लाने लगी, मैं थोड़ी देर उसकी चूचियों को दबाता रहा और वो शांत हो गई, मुझसे रुका नहीं जा रहा था मैने दोबारा जोर लगाया लंड थोड़ा और अंदर चला गया, वो फ़िर से चिल्लाने लगी, मैं अब उसके मुँह पर हाथ रख कर 2 – 3 झटकों में सारा लंड अंदर कर दिया और ऐसे ही उसके ऊपर लेट गया और चूचियों को मसलता रहा।
मैने उसकी आंखों की तरफ़ देखा तो उसकी आंखों से आँसू आ रहे थे, थोड़ी देर ऐसे ही रहने से उसका दर्द कम हो गया और मैं थोड़ा-2 हिलना शुरु कर दिया कुछ देर बाद उसको मज़ा आने लगा, उसके मुँह से स्सस्सस्सस्सस्सस्सस की आवाज आ रही थी और बार – 2 आई लव यू कह रही थी, 10 – 15 मिनट बाद मैं झड़ गया, उस दौरान वो भी मेरे साथ ही झड़ गई, उसके बाद हम दोनो बात करते रहे, बाद में वो बोली की मुझे नींद आ रही है, मैं सोना चाहती हूं, मेरा सारा बदन दुख रहा है, कुछ देर बाद हम सो गये, सुबह 3 बजे का टाइम हुआ था कि मैं सो रहा था कि मुझे लगा कि मेरा लंड कोई चूस रहा है, मैने आंख खोल कर देखा तो वो बड़ी जल्दी मुँह के अंदर बाहर कर रही थी, वो बोली कि मुझे दोबारा चुदाई करवानी है प्लीज़ करो, मैने दोबारा पोज़िशन बदल कर के उसकी चूत में लंड डाल दिया और दोबारा चुदाई करने लगे, 25 मिनट बाद मैं झड़ गया उस दौरान वो 2 बार झड़ चुकी थी, मैने पूरी रात इसी तरह 4 बार चुदाई की और एक बार उसकी गांड भी मारी

बहन के साथ मज़ा

मेरा नाम अमित है और मैई 20 साल का एक जुवाक हूँ मेरी दीदी का नाम संगीता है और उसकी उमर क़रीब 26 साल है दीदी मुझसे 6 साल बारी हैं हूमलोग एक मिददले-क्लस्स फमिल्य है और एक छोटे से फ़्लत मे मुंबई मे रहते हैं
हुमारा घर मे एक छोटा सा हलल, दिनिंग रूम दो बेडरोमम और एक कित्चें है बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे. हुमरे पिताजी और मा दोनो नौकरी करते हैं दीदी मुझको अमित कह कर पुकार्ती हैं और मैई उनको दीदी कहा कर पुकार्ता हूँ. शुरू शुरू मे मुझे सेक्श के बारे कुछ नही मालूम था क्योंकि मैई हिघ सचूल मे पर्हता था और हुमरे बुल्डिंग मे भी अच्छी मेरे उमर की कोई लार्की नही थी. इसलिए मैने अभी तक सेक्श का मज़ा नही लिया था और ना ही मैने बटक कोई नंगी लार्की देखी थी. हाँ मैई कभो कभी प्रोनो मागज़ीने मे नंगी तसबीर देख लिया करता था. जब मैई चौदह साल का हुआ तो मुझे लरकीओं के तरफ़ और सेक्श के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ. मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लार्की थी तो वो सनगीता दीदी ही थी. दीदी की लुंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहएरा और बॉडय स्ट्ृुक्टूरे हिंदी सिनेमा के ज़ेनट अमन जैसा था. हाँ उनकी चुनची ज़ेनट अमन जैसे बारी बारी नही थी.
मुझे अभी तक याद है की मैई अपना पहला मूट मेरी दीदी के लिए ही मारा था. एक सुंदय सुबह सुबह जैसे ही मेरी दीदी बाथरूम से निकली मैई बाथरूम मे घुस गया. मई बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपरे खोलना शुरू किया. मुझे जोरो की पिशाब लगी थी. पिशाब करने के बाद मैई अपने लंड से खेलने लगा. एका एक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे दीदी के उतरे हुए कपरे पर परा. वँह पर दीदी पानी निघतगोवँ उतर कर चोर गयी थी. जैसे ही मैने दीदी की निघतगोवँ उठाया तो देखा की निघतगोवँ के नीचे दीदी की ब्लक्क ब्रा परा हुआ था. जैसे ही मैई दीदी का काले रंग का ब्रा उठाया तो मेरा लंड अपने आप कहरा होने लगा. मई दीदी के निघतगोवँ उठाया तो उसमे से दीदी के नीले रंग का पंतय भी गिर कर नीचे गिर गया. मैने पंतय भी उठा लिया. अब मेरे एक हाथ मे दीदी की पंतय थी और दूसरे हाथ मे दीदी के ब्रा था.
ओह भगवान दीदी के अंडेरवाले कपरे चूमे से ही कितना मज़ा आ रहा है एह वोही ब्रा हैं जो की कुछ देर पहले दीदी के चुनचेओं को जाकर रखा था और एह वोही पंतय हैं जो की कुछ देर पहले तक दीदी की छूट से लिपटा था. एह सोच सोच करके मैई हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था. मई सोच नही प र्ह था की मैई दीदी के ब्रा और पंतय को लेकर्के क्या करूँ. मई दीदी की ब्रा और पंतय को लेकर्के हैर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चटा और पता नही क्या क्या किया. मई उन कपरों को अपने लंड पर माला. ब्रा को अपने छाती पर रखा. मई अपने खरे लंड के ऊपेर दीदी की पंतय को पहना और वो लंड के ऊपेर ताना हुआ था. फिर बाद मे मैं दीदी की निघतगोवँ को बाथरूम के देवर के पास एक हंगेर पर तंग दिया. फिर कपरे तंगने वाला पीन लेकर्के ब्रा को निघतगोवँ के ऊपेरी भाग मे फँसा दिया और पंतय को निघतगोवँ के कमर के पास फँसा दिया. अब ऐसा लग रहा था की दीदी बाथरूम मे देवर के सहारे ख़री हैं और मुझे अपनी ब्रा और पंतय दिख रही हैं मई झट जा कर दीदी के निघतगोवँ से छिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मान ही मान सोचने लगा की मैं दीदी की चुनची चुस रहा हूँ. मई अपना लंड को दीदी के पंतय पास रगारने लगा और सोचने लगा की मैई दीदी को छोड़ रहा हूँ. मई इतना गरम हो गया था की मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनना गया था और थॉरी देर के बाद मेरे लंड ने पानी चोर दिया और मैई झार गया. मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी चोरा था और मेरे पानी से दीदी की पंतय और निघतगोवँ भीग गया था. मुझे पता नही की मेरे लंड ने कितना वीरज़ निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे दीदी के नाम पर निकला था.
मेरा पहले पहले बार झरना इतना तेज़ था की मेरे पैर जवाब दे दिया और मैई पैरों पर ख़रा नही हो प रहा था और मैई चुप छाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया. थॉरी देर के बाद मुझे होश आया और मैई उठ कर नहाने लगा. शोवेर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुआ और मैई फ़्रेश हो गया. नहाने बाद मैई देवर से दीदी की निघतगोवँ, ब्रा और पंतय उतरा और उसमेसे अपना वीरज़ धो कर साफ़ किया और नीचे रख दिया. उस दिन के बाद से मेरा एह मूट मरने का तरीक़ा मेरा सुब्से फावरीटे हो गया. हाँ, मुझे इस तरह से मूट मरने का मौक़ा सिर्फ़ इटवार इटवार को ही मिलता था. क्योंकि, इटवार के दिन ही मैई दीदी के नहाने बाद नहाता था. इटवार के दिन चुप छाप अपने बिस्टेर परा परा देखा करता था की कब दीदी बाथरूम मे घुसे और दीदी के बाथरूम मे घुसते ही मैई उठ जया करता था और जब दीदी बाथरूम से निकलती तो मैई बाथरूम मे घुस जया करता था. मेरे मा और पिताजी सुबह सुबह उठ जया करते थे और जब मैई उठता था तो मा रसोई के नाश्ता बनती होती और पिताजी बाहर बलकॉनय मे बैठ कर अख़बार पर्हते होते या बाज़ार गाये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने. इटवार को चोर कर मैई जब भी मूट मरता तो तब एही सोचता की मैई अपना लंड दीदी की रस भारी छूट मे पेल रहा हूँ. शुरू शुरू मे मैई एह सोचता था की दीदी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मैई एह सोचने लगा की दीदी की छूट छोड़ने मे कैसा लगेगा. मई कभी कभी सपने ने दीदी को नंगी करके छोड़ता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था. मैने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे मे किसी को भी नही बताया था और दीदी को भी इसके बारे मे जानने दिया.
मई अपनी सचूल की पर्हई ख़तम करके कॉल्लेगे जाने लगा. कॉल्लेगे मेरे कुछ गिरल फ़रिएंड भी हो गाये उन गिरल फ़रिएंड मे से माने दो चार के साथ सेक्श का मज़ा भी लिया. मई जब कोई गिरल फ़रिएंड के साथ छुड़ाई करता तो मैई उसको अपने दीदी के साथ कोंपरे करता और मुझे कोई भी गिरल फ़रिएंड दीदी के बराबर नही लगती. मई बार बार एह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ दीदी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर दीदी पर ही आ जाता. मई हूमेशा 24 घंटे दीदी के बारे मे और उसको छोड़ने के बारे मे ही सोचता रहता. मी जब भी घर पर होता तो दीदी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी की नही थी. दीदी जब भी अपने कपरे बदलती थी या मा के साथ घर के काम मे हाथ बताती थी तो मैई चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सूदोल चुची देखने को मिल जाती (ब्लौसे के ऊपेर से) थी. दीदी के साथ अपने छोटे से घर मे रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ैदा हुआ करता था. कभी मेरा हाथ उनके शरेर से टकरा जाता था. मई दीदी के दो भरे भरे चुनची और गोल गोल छूटारों को चुने के लिए मारा जा रहा था.
मेरा सुब्से अच्छा पासस टीमे था अपने बलकॉनय मे खरे हो कर सरक पर देखना और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुनचेओं को चुना. हुमरे घर की बलकॉनय कुछ ऐसी थी की उसका लुंबाई घर के सामने गली के बराबर मे था और उसकी सकरी सी चौराई के सहारे खरे हो कर हम सरक देख सकते थे. हुमरे बलकॉनय की चौराई इतनी थी के दो आदमी एक साथ सात के खरे हो कर सरक को देख सके. मई जब भी बलकॉनय पर खरे होकर सरक को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोर कर बलकॉनय के रेल्लिंग के सहारे ख़रा रहता था. कभी कभी दीदी आती तो मैई तोरा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़री हो जाती. मई ऐसे घूम कर ख़रा होता की दीदी को जाती.बिल्कुल---!!---बिलकुल सात कर ख़रा होना पर्टा. दीदी की भारी भारी चुनची मेरे सीने से सात जाता था. मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बलकॉनय के रेल्लिंग के सहारे रहती वे दीदी के चुनचेओं से छु जाती थी. मई अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चुनचेओं पर हल्के हल्के चलत था और दीदी को एह बात नही मालूम था. मई उंगलीओं से दीदी की चुनची को छू कर देखा की उनकी चुनची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मैई दीदी के छूटारों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूटा था. मई हूमेशा ही दीदी की सेक्ष्य शरेर को इसी तरह से छूटा था.
मई समझता था की दीदी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं दीदी इस बात का पता भी नही था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरेर से खेलना चाहता है लेकिन मैई ग़लत था. फिर एक दीदी ने मुझे पाकर लिया. उस दिन दीदी कित्चें मे जा करा अपने कपरे छाई कर रही थी. हलल और कित्चें के बीतच का पर्दा तोरा खुला हुआ था. दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतर रही थी और उसकी ब्रा मे चुपा हुआ चुनची मेरे नज़रों के सामने था. फ़र रोज़ के तरह मैई त.व. देख रहा था और दीदी को भी कंखिओं से देख रहा था. दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर तँगा मीर्रोर को देखी और मुझे आँखे पहर फ़र कर घुरते हुए पाई. दीदी ने देखा की मैई उनकी चुनचेओं को घूर रहा हूँ. फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे मिरूर मे टकरा गयी मई शर्मा गया और अपने आँखे त.व. तरफ़ कर लिया. मेरा दिल क्याधारक रहा था. मई समझ गया की दीदी जान गयी हैं की मैई उनकी चुनचेओं को घूर रहा था. अब दीदी क्या करेंगी? क्या दीदी मा और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ मे घूम रहा था. मई दीदी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नही पाया. उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैई दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नही देखा. इन 2-3 दीनो मे कुछ नही हुआ. मई ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घुरना चालू कर दिया. दीदी मे मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पाकर लिया, लेकिन फिर भी कुछ नही बोली. मई समझ गया की दीदी को मालूम हो चुक्का है मैई क्या चाहता हूँ और वो हुमए कुछ नही बोलेंगी. दीदी हुँसे इस बारे मे कोई नही बात की और ना ही किसीसे कुछ बोली. एह मेरे लिए बहुत अस्चर्या की बात थी. ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नही तो मौझे क्या लेना देना और बारे मज़े से दीदी घुरने लगा.
एक दिन मैई और दीदी अपने घर के बलकॉनय मे पहले जैसे खरे थे. दीदी मेरे हाथों से सात कर ख़री थी और मैई अपने उंगलीओं को दीदी के चुनची पर हल्के हल्के चला रहा था. मुझे लगा की दीदी को शायद एह बात नही मालूम की मैई उनकी चुनचेओं पर अपनी उंगलीओं को चला रहा हूँ. मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सात कर ख़री थी. लेकिन मैई एह तो समझ रहा थी क्योंकी दीदी ने पहले भी नही टोका था, तो अब भी कुछ नही बोलेंगी और मैई आराम से दीदी की चुनचेओं को छू सकता हूँ. हूमलोग अपने बलकॉनय मे खरे थे और आपस मे बातें कर रहे थे, हूमलोग कॉल्लेगे और स्पोर्ट्स के बारे मे बाते कर रहे थे. चुनकी हुमारा बलकॉनय के सामने एक गली था तो हूमलोगों की बलकॉनय मे कुछ अंधेरा था.
बाते करते करते दीदी मेरे उंगलीओं को, जो उनकी चुनची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पाकर कर अपने चुनची से हटा दिया. दीदी को अपने चुनची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थॉरी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरेर कुछ आकर गयी लेकिन, दीदी अपने जगह से हिली नही और मेरे हाथो से सात कर ख़री रही. दीदी ने मुझे से कुछ नही बोली तो मेरा होम्मात बार्ह गया और मैई अपना पूरा का पूरा पाँजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चुनची पर रख दिया. मई बहुत दर रहा था. पता नही दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरेर कांप रहा था. लेकिन दीदी कुछ नही बोली. दीदी सिर्ह एक बार मुझे देखी और फिर से सरक पर देखने लगी. मई भी दीदी की तरफ़ दर के मारे नही देख रहा था. मई भी सरक पर एख रहा था और अपना हाथ से दीदी की एक चुनची को धीरे धीरे सहला रहा था. मई पहले धीरे धीरे दीदी की एक चुनची को सहला रहा था और फिर थॉरी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चुनची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा. दीदी की चुनची काफ़ी बारी थे और मेरे पनजे मे नही समा रही थी. मुझे पहले दीदी की चुनची को नीचे पकरना पर रहा था और धीरे धीरे मैई अपने हाथ को ऊपेर ले जा रहा था. थॉरी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ता और ब्रा के ऊपेर से लगा की चुनची के निपपले तन गयी और मैई समझ गया की मेरे चुनची मसलने से दीदी गरमा गयी हैं दीदी की कुर्ता और ब्रा के कपरे बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे दीदी की निपपले टनने के बाद एक छोटा सा रुबबेर जैसा लग रहा था. ओह भागबाँ! मई तो जाती स्वारग मे था, दीदी की चुनची चुने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था. किसी जवान लार्की के चुनची चुने का मेरा एह पहला अब्सर था. मुझे पता ही नही चला की मैई कब तक दीदी की चुनचेओ को मसलाटा रहा. और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए माना नही किया. दीदी चुपचाप ख़री हो कर मुझसे अपना चुनची मिज़वटी रही. दीदी की चुनची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़रा होने लगा था. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और मैई एह सोच सोच कर और भी मज़ा ले रहा था की मेरी बारी दीदी चुपचाप ख़री रहा कर मुझसे अपनी चुनची मसलवा रही थी. मई तो और पता नही कब तक दीदी की चुनची को मसलता लेकिन एकाएक मा की आवाज़ सुनाई दी. मा की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चुनची से हटा दिया और मा के पास चली गयी उस रत मैई सो नही पाया, मैई सारी रत दीदी की मुलायम मुलायम चुनची के बारे मे सोचता रहा.
दूसरे दिन शाम को मैई रोज़ की तरह अपने बलकॉनय मे खरा हो कर सरक की तरफ़ देख रहा था. थॉरी देर के बाद दीदी बलकॉनय मे आओउई और मेरे बगल मे दूर ख़री हो गयी मई 2-3 मुनुते तक चुपचाप ख़रा रहा और दीदी की तरफ़ देखता रहा. दीदी ने मेरे तरफ़ देखी. मई धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नही मुस्कुरई और चुपचाप सरक पर देखने लगी. मई दीदी से धीरे से बोला, और पास आ दीदी ने हुँसे पूछी. चुना चटा मैई साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नही कह पा रहा था. चुना चाहते हो? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछी. तब मैई धीरे से दीदी से बोला, तुम्हारी डॉडध चुना दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या चुना है साफ़ साफ़ मई तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चुनची चुना है उनको मसलना अभी मा आ सकती दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोली. मई भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, भी मा आएगी हूमलोगों को पता चल मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नही बोली और चुपचाप ख़री रही. तब मैयाने फिरे से दीदी से बोला, दीदी और नज़दीक आ
तब दीदी मेरे और पास आ कर ख़री हो गयी दीदी मेरे जाती पास ख़री थी, लेकिन उनकी चुनची कल की तरह मेरे हाथों से नही छू रहा था. मई समझ गया की दीदी आज मेरे से सात कर ख़री होने से कुछ शर्मा रही है अबतक दीदी अनजाने मे मुझसे सात कर ख़री होती थी. लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सात कर ख़री होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सात कर ख़री होने से क्या होगा. जैसे दीदी पास आ गयी और अपने हाथों से दीदी को और पास खीच लिया. अब दीदी की चुनची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी. मई क़रीब पाँच मिनुत तक इंतेज़ार किया औ फिर अपना हाथ दीदी की चुनची पर टीका दिया. दीदी के चुनची चुने के साथ ही मैई मानो स्वर्ग पर पहुँच गया. मई दीदी की चुनची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मिन्ज़ा और मसला. कल की तरह, आज भी दीदी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपरे का था, और उनमे से मुझे दीदी की निपपले तन कर खरे होना मालूम चल रहा था. मई तब अपने एक उंगली और औंगूते से दीदी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. मई जतने बार दीदी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार दीदी कसमसा रही थी और दीदी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था. तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोली, धीरे दबा, लगता मई तब दीदी की चुनची मीज़ई तोरा धीरे धीरे करने लगा.
मई और दीदी ऐसे ही फालट्ू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैई और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे. लेकिन असल मे मैई दीदी की चुनचेओं को अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था. थॉरी देर मा ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा. मई रोज़ दीदी की चुनचेओं को अपने एक हट से मिनज़्त रहा और दीदी भी रोज़ शाम को मेरे बगल मे ख़री हो कर मुझसे अपनी चुनची मिनज़वती रही. लेकिन एक समस्या थी मैई एक वक़्त पर दीदी की सिर्फ़ एक चुनची को मसल पता था. मतल्ब जब दीदी मेरे बाई तरफ़ ख़री होते तो मैई दीदी की दाईन चुनची मसलता और जब दीदी मेरे दाईन तरह ख़री होती तो मैई दीदी की बाईं चुनची को दबा पता. लेकिन असल मे मैई दीदी को दोनो चुनचेओं को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था. लेकिन बलकॉनय मे खरे हो कर एह मुमकिन नही था. मई दो दिन तक इसके बारे मे सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैई हलल मे बैठ कर त.व. देख रहा था. मा और दीदी कित्चें मे दिननेर की टायरी कर रही थी. कुछ देर के बाद दीदी ने पाना काम ख़तम करके हलल मे आ गयी मई हलल मे बिस्टेर पर बैठा था और मेरा पीठ दीवार के सहारे था और पैर फैले हुए थे. दीदी कित्चें से आ कर बिस्टेर पर बैठ गयी दीदी ने थॉरी देर तक त.व. देखी और फिर अख़बार उठा कर पर्ने लगी. थॉरी देर तक अख़बार के फ़्रोंट पगे के नेवस पर्ने के बाद दीदी ने अख़बार खोल करके अंदर वाले पगे के नेवस पर्ने लगी. दीदी बिस्टेर पर पालटी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पार् रही थी. मेरा पैर दीदी को छू रहा था. मैने अपना पैरों को और तोरा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जंघो को छू रहा था. मा कित्चें मे काम कर रही थी और मैई उनको देख रहा था. मई दीदी की पीठ को देख रहा था. दीदी आज एक काले रंग का त-शिर्त पहने हुई थी और उस त-शिर्त का बहुत ही झिना था. त-शिर्त के ऊपेर से मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था. मुझे दीदी सेक्ष्य पीठ और काले रंग वाला ब्रा देख कर गरमा गया और मेरे दिमाग़ मे कुछ सुझा.
मई धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और त-शिर्त के ऊपेर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा. जैसे माएरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर आकर गया. दीदी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, एह तुम क्या कर रहे नही, बस मैई तुम्हारे पीठ पर आपण हाथ रगर रहा मैने दीदी से बोला. "तुम पागल तो नही हो गाये मा अभी हम दोनो तो कित्चें से देख लेगी", दीदी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली. "मा कैसे देख लेगी?" मैने दीदी से कहा. "क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने हुँसे पूछी. "मेरा मतलब एह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुईए है अगर मा हुमरे तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी." मैने दीदी से धीरे से कहा. "तू बहुत स्नर्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर दीदी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पर्ने लगी. मई भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के चिक्नी पीठ पर घूमने लगा. मई कभी कभी अपने उँगलेओं से दीदी की ब्रा को उनके त-शिर्त के ऊपेर से छू रहा था. कुछ समय के बाद मैई अपना जात दीदी के दाहिने बगल के तरफ़ बरहा दिया और हाथ फेरने लगा. मई दीदी के दाहिने बगल के पास अपना हाथ 2-3 बार ऊपेर नीचे किया और फिर तोरा सा झुक कर मैई अपना हाथ दीदी की दाहिने चुनची पर रख दिया. जैसे ही मैई अपना हाथ दीदी के दाहिने चुनची पर रखा दीदी थॉरी सी कांप गयी मई भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चुनची अपने हाथ से मसलने लगा. थॉरी देर दाहिना चुनची मसलने के बाद मैई अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चुनची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चुनचेओं को एक साथ मसलने लगा. दीदी कुछ नही बोली और वो चुप छाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार परहती रही. मेरा साहस कुछ बार्ह गया और तोरा सा सामने खिसक कर दीदी की त-शिर्त को पीछे से उठाने लगा. दीदी की त-शिर्त दीदी के छूटारों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नही उठ रही थी. मई तोरा सा ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नही हुआ. तब मैने धीरे से दीदी से कहा, दीदी, तोरा
दीदी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया. दीदी थॉरी सी झुक कर के अपना छूतर को उठा दिया और मैने उनका त-शिर्त धीरे से उठा दिया. अब मैई फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ त-शिर्त के अंदर कर दिया. वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का. मई धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका त-शिर्त पूरा का पूरा उठ दिया और दीदी की पीठ पूरा की पूरा नागी कर दिया. अब मुझे दीदी की चुनचेओं का कुछ कुछ हिस्सा उनके काले ब्रा के ऊपेर से दिख रहा था. तेरे.
मई अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया. जैसे ही मैने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगी. फिर मैई धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बरहा दिया. फिर मैई दीदी की ब्रा से दाख़ी दोनो चुनचेओं को अपने हाथ मे पाकर लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. दीदी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने मे मज़ा आ रहा था. मई तब आराम से दीदी की दोनो चुनचेओं को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपले को अपने उनगेओं से पाकर कर खिचने लगा.
मा अभी भी कित्चें मे खाना पका रही थी. हूमलोगों को मा साफ़ साफ़ कित्चें मे काम करते दिखलाई दे रही थी. मा कभी कभी हुमरे तरफ़ देख लेती और उनको दीदी का अख़बार परना दिखलैईई दे रहा था. उनको एह समझ मे ही आ रहा था की कमरे मे मैई दीदी की चुनचेओं को दबा दबा कर सूच ले रहा हूँ और दीदी चिंची मसलवा मसलवा कर सूच ले रही है मई एह सोच सोच कर कुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चुनचेओं से खेलने दे रही है और वो भी तब जब मा घर मे मौजूद हैं
मई ऐसे सुनहरा अब्सर खोना नही चाहता था. मई तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हूक को खोलने लगा. दीदी की ब्रा बहुत तिघ्ट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नही खुल रहा था. लेकिन जब तक दीदी को एह पता चलता मैई उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया. दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की मा कित्चें मे से हलल मे आ गयी मई जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की त-शिर्त नेचे कर दिया और हाथ से त-शिर्त को ठेक कर दिया. मा हलल मे आ कर बेद के बगल से कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी. दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए मा से बाते कर रही थी. मा को हुमरे कारनामो का पता नही चला और फिर से कित्चें मे चली गयी
जब मा फिर से कित्चें मे चली गयी तो दीदी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा "क्या? मई एह हूक नही लगा पौँगा," मैई दीदी से बोला. "क्यों, तू हूक खोल सकता और लगा नही दीदी मुझे झिरकते हुए बोली. "नही, एह बात नही है दीदी. तुम्हारा ब्रा बहुत तिघ्ट हइ ँेअं! इतस तू तिघ्ट दीदी!" मैई फिर दीदी से कहा. दीदी अख़बार पर्हते हुए बोली, कुछ नही पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लागागे." दीदी हुँसे नाराज़ होती बोली. "लेकिन दीदी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?" मैई दीदी से पूछा. "बुढहू, मैई नही लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने परेंगे और मा देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था की मैई क्या करूँ. मई अपना हाथ दीदी के त-शिर्त के नीचे से दोनो बगल के तरह बरहा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा. जब स्ट्रप तोरा आगे आया तो मैने हूक लगाने की कोशिश करने लगा. लेकिन ब्रा बहुत ही तिघ्ट था और मुझसे हूक नही लग रहा था. मई बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार मा की तरफ़ देख रहा था. मा ने रत का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी कित्चें से हलल आ सकती थी. दीदी थॉरी तक चुप बैठी रही और फिर मुझसे बोली, बुढहू, एह अख़बार पाकर. अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा." मई बगल से हाथ निकल कर दीदी के सामने अख़बार पाकर लिया और दीदी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी. मई पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था. ब्रा इतनी तिघ्ट थी की दीदी को भी हूक लगाने मे दिक्कत हो रही थी. आख़िर कर दीदी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया. जैसे ही दीदी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया मा कमरे मे फिर से आ गयी मा बिस्टेर पर हूमलोगों के बगल मे बैठ कर दीदी से बातें करने लगी. मई बिस्टेर से उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल परा, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुक्का था और मुझे उसे ठंडा करना था.
दूसरे दिन जब मैई और दीदी बलकॉनय पर खरे थे तो दीदी मुझसे बोली, हूमलोग कल रत क़रीब क़रीब पाकर लिए गाये थे. मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैई कल रत की बात से बहीत शर्मिंदा हूँ. तुम्हारी ब्रा इतना तिघ्ट था की मुझसे उसकी हूक नही लगा" मैने दीदी से कहा. दीदी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने मे बहुत शरम आ रही दीदी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैने दीदी से धीरे से पूछा. दीदी बोली, हूमलोग फिर दीदी समझ गयी की मैई दीदी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद मे अपने आप समझ जाएगा.
फिर माने दीदी से धीरे से कहा, मैई तुमसे एक बात हाँ दीदी तपाक से बोली. "दीदी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नही मैने दीदी से पूछा. दीदी तब मुस्कुरा कर बोली, जाती प्रिवते क़ुएस्टीओं है इसका जवाब मैई नही तुम्हे पता है की मैई कोई छोटा बक्चा नही हूँ, इसलिए तुम मुझे बता सकती मैई दीदी से कहा. "क्योंकि... क्योंकि... कोई ख़ास बागाह नही है हाँ, एक बज़ाह है सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी दीदी ने कुछ सोच कर बोली. मई तपाक से दीदी से कहा, बात नही. तुम पैसे के लिए मत घबरओ, मैई तुम्हे पैसे मेरे बातों को सुनकर दीदी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोते मई भी अपना पुर्से निकल कर दीदी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोते ले दीदी मेरे हाथ मे 100 का नोते देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नही चाहिए. मई तो यूँही ही मज़ाक कर रही "लेकिन मैई मज़ाक नही कर रहा हूँ. दीदी तुम ना मत करो और एह रुपये तुम मुझसे ले और मैई ज़बरदस्ती दीदी के हाथ मे वो 100 का नोते तमा दिया. दीदी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोते ले लिया और बोली, है बही, मैई तुम्हे उदास नही देख सकती और मैई एह रुपया ले रही हूँ. लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ. तीख मई भी दीदी से बोला, और मैई अंदर जाने लगा. अंदर जाते जाते मैई दीदी से फिर बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना. मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद दीदी मुस्कुरा कर बोली, तुझे अपने दीदी के उंडेर्गारमेंट मे बहुत दिलचस्पी मई भी मुस्कुरा कर दीदी से कहा, और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पंतय भी ख़रीदना ना दीदी शर्मा गाये और मुझे मरने के लिए दौरी लेकिन मैई अंदर भाग गया.
अगले दिन शाम को मैई दीदी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोने पर बातें करते हुए सुना. मई सुना की दीदी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है दीदी के सहेली ने बाद मे कॉन्फीर्म करने के लिए बोली. कुछ देर के बाद मैई दीदी को अकेला प कर बोला, मैई भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ. क्या मैई तुम्हारे साथ जा सकता दीदी थॉरी देर तक कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मैई अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को हुमरे घर पर आ रही है और फिर मैने मा से भी अभी नही कही है की मैई मार्केईंग के लिए जा रही मई दीदी से कहा, बात नही है तुम जा कर मा से बोलो की तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना मा तुम्हे जाने देंगी. फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राममे कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नही है ठीक है ना, "हाँ, एह बात मुझे भी ठीक लगती है मई जा कर मा से बात करती और एह कहकार दीदी मा से बात करने अंदर चली गयी मा ने तुरंत दीदी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कहा दी.
उस दिन श्म को मैई और दीदी साथ साथ कपड़े की मार्केट मे गाये जाते वक़्त बूस मे बहुत भीर थी और मैई ठीक दीदी के पीछे ख़रा हुआ था और दीदी के छूतर मेरे जंघो से टकरा रहा था. मार्केट मे भी बहुत भीर थी. मई हूमेशा दीदी के पीछे चल रहा था जिससे की दीदी को कोई धक्का ना मार दे. हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान मे खरे हो कर कपरे देखते तो दी मुझसे छिपक कर ख़री होती और उआकी चुनची और जंघे मुझसे छू रहा होता. अगर दीदी कोई दुजन पर कपरे देखती तो मैई भी उनसे जाती सात कर ख़रा होता और अपना लंड कपरों के ऊपेर से उनके छूतर सो भीरा देता और कभी कभी मैई उनके छूटारों को अपने हाथों से सहला देता. हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट मे भीर का था. मुझे लगा की मेरे इन सब हरकतों दीदी कुछ समझ नही पा रहे है क्योंकी मार्केट मे बहुत भीर था.
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